परिचित
अपरिचित
व्यक्तित्व में धुंध है ।
समृद्ध
दीन
पहनावे में धुंध है ।
सामाजिक
असामाजिक
सोच में धुंध है ।
एक क्षितिज से दूसरे क्षितिज तक
धुंध ही धुंध है ।
धुंध ही अब जीवन है ।
साहित्य का मुरीद हूँ ...कुछ लिखना चाहता हूँ ... बहुत कुछ पढ़ना अभी बाकी है ...
परिचित
अपरिचित
व्यक्तित्व में धुंध है ।
समृद्ध
दीन
पहनावे में धुंध है ।
सामाजिक
असामाजिक
सोच में धुंध है ।
एक क्षितिज से दूसरे क्षितिज तक
धुंध ही धुंध है ।
धुंध ही अब जीवन है ।
मलवे का गीत
The Song of the Wreck
The wind blew high, the waters raved,
A ship drove on the land,
A hundred human creatures saved
Kneel’d down upon the sand.
Three-score were drown’d, three-score were thrown
Upon the black rocks wild,
And thus among them, left alone,
They found one helpless child.
A seaman rough, to shipwreck bred,
Stood out from all the rest,
And gently laid the lonely head
Upon his honest breast.
And travelling o’er the desert wide
It was a solemn joy,
To see them, ever side by side,
The sailor and the boy.
In famine, sickness, hunger, thirst,
The two were still but one,
Until the strong man droop’d the first
And felt his labours done.
Then to a trusty friend he spake,
“Across the desert wide,
O take this poor boy for my sake!”
And kiss’d the child and died.
Toiling along in weary plight
Through heavy jungle, mire,
These two came later every night
To warm them at the fire.
Until the captain said one day,
“O seaman good and kind,
To save thyself now come away,
And leave the boy behind!”
The child was slumbering near the blaze:
“O captain, let him rest
Until it sinks, when God’s own ways
Shall teach us what is best!”
They watch’d the whiten’d ashy heap,
They touch’d the child in vain;
They did not leave him there asleep,
He never woke again.
पताका
वह क्या है जो हवा में लहरा रहा है?
सिर्फ एक कपड़े का टुकड़ा ही तो है
जो एक राष्ट्र को घुटनों पर ला सकता है।
वह क्या है जो खम्बे से लहरा रहा है?
सिर्फ एक कपड़े का टुकड़ा ही
तो है
जो आदमी के साहस का प्रतीक है ।
वह क्या है जो छावनी के ऊपर है ?
सिर्फ एक कपड़े का टुकड़ा ही
तो है
जो एक डरपोक को भी हिम्मत दे रहा है ।
वह क्या है जो खेतों से होते हुए उड़ रहा है ?
सिर्फ एक कपड़े का टुकड़ा ही
तो है
जो बहते हुए खून को भी रोक देगा ।
मैं ऐसे कपड़े के टुकड़े को कैसे रख सकता हूँ ?
मेरे मित्र, मुझे तो सिर्फ एक झण्डा चाहिए ।
अंत तक, अपने अंतःकरण को बचाकर रखने के लिए ।
एक और दिवस
भाइयों और बहनों !
शब्द मात्र नहीं ,
गूँज है हवाओं में
आओ मनाते हैं योग दिवस।
भूल जाओ,
उस बात पर, ध्यान मत दो
जहाँ एक किसान पेड़ से लटक रहा है,
वो शायद मरा नहीं है,
ध्यान कर रहा है ।
भाइयों और बहनों !
आओ शुद्ध करे मन को ,
आँखों को मूँद लो दो उँगलियों से
आहिस्ता-आहिस्ता सांस लो,
फसल बाढ़ से खराब हो गई,
ये ध्यान में न आए
शांति और गहन शांति
योगमय वातावरण में
ज़ोर-ज़ोर से हँसो
हा हा हा हा हा हा
एक बार और
हा हा हा हा हा हा ।
योगाभ्यास पर बैठा एक पुरुष बताता है,
कल एक किसान बाढ़ से
अपने जान से अजीज खेत को बचाते-बचाते योग सीख गया
और बाढ़ का पानी फसल पर हावी हो गया ।
यह सब देख
बेचारा किसान योगी दम तोड़ दिया,
शायद सदमें से और हृदय गति रुकने से
खैर, भाइयों और बहनों
गहरी साँस ले और धीरे-धीरे छोड़े ।
मन का विकार दूर करें ,
चंद मिनट का शोक करेंगे
हमारे किसान भाई के लिए,
फिर योगाभ्यास में लौटेंगे ।
रंग बिरंगी योग मैट का मोल ज्यादा है
और किसान का मोल योग मैट जैसा
उसे भूल जाओ,
उस पर बैठ जाओ
और योग करो, भाइयों और बहनों ।
एक बार फिर हँसेंगे
हा हा हा... हा हा हा ।
उसकी आँखों से
हमारी गुड़िया
राजस्थानी की चार बोलियाँ जो आपस में घने
रूप में जुड़ी हैं । इनकी सामान्य विशिष्टता ण ळ और ड़ ध्वनियों में सुविदित है । ड़ा या ड़ी
प्रत्यय बहुत व्यापक है, जैसे – संदेसड़ों , बापड़ो
।
पश्चिमी
हिन्दी की छह बोलियाँ है – तीन आकारबहुला (कौरवी, हरयाणी और दक्खिनी), और तीन ही ओकारबहुला (व्रजभाषा , कन्नौजी और
बुन्देली )। छहों का एक वर्ग में रखे जाने का तात्पर्य स्पष्ट है की इनमें गहरा
अन्तःसंबंध है । दो वर्गों में आ ओ का जो अंतर है वह प्रमुख है, जैसे – चल्या चल्यो, छोहरा छोहरो, मीठा मीठो । व्रजभाषा आदि की ओकाराबहुला उसे राजस्थानी बोलियों से भी
जोड़ती है। बुन्देली में भविष्यत कालिक ग-रूप नहीं है जो अन्य पश्चिमी बोलियों में
पाया जाता है । इसमें – ह रूप है जो बुन्देली को अवधि के साथ सम्बद्ध कर देता है ।
भौगौलिक दृष्टि से भी पश्चिमी हिन्दी बुन्देली और पूर्वी हिन्दी की अवधी की सीमाएं
जुड़ी है । सीमावर्ती क्षेत्रों में दूर तक दोनों बोलियों का मिश्रण मिलता है ।
कन्नौजी को बहुत से विद्वान अलग बोली
मानने को तैयार नहीं है । यह व्रजभाषा और अवधि का मिश्रित रूप है । कन्नौजी और
अवधी में ऐ औ का उच्चारण अइ अऊ होता है; जैसे –अइसा, कउन ।
दोनों में कुछ परसर्गों की अद्भुत समानता है – कर्म क, का, को, करण-अपादान से ( कन्नौजी में सें सौं भी ), अधिकरण माँ, महँ ।
तिर्यक बहुवचन –न व्रजभाषा आदि अवधी आदि में समान है । इस प्रकार बुन्देली
और कन्नौजी जो पश्चिमी हिन्दी की बोलियाँ हैं, अर्थात पूर्वी
हिन्दी से जुड़ गई हैं ।
पूर्वी
हिन्दी की तीन बोलियों में परस्पर थोड़ा अंतर है । कुछ भाषाविज्ञानी बघेली को अवधी
को ही उपबोली मानते हैं । जितनी समानता पूर्वी हिन्दी की बोलियों में है, उतनी
किसी वर्ग की बोलियों में नहीं है । वास्तव में अवधी, बघेली
और छत्तीसगढ़ी का एक महाजनपद रहा है जिसे कोसल कहते थे ।
अवधी
बिहारी बोलियों में भोजपूरी के माध्यम से जा मिलती है । संज्ञा के तीन-तीन रूप लघु, गुरु और
अतिरिक्त अवधी और सभी बिहारी बोलियों में समान है, जैसे- माली, मलिया, मलियवा, घोड़ा, घोड़वा, घोड़उवा । दोनों वर्गों में स्त्री प्रत्ययों
में – इनि प्रमुख है, जैसे- मालिनी, लरिकिनि
। परसर्गों में भी कोई विशेष अंतर नहीं है । कर्ता के साथ ‘ने’ परसर्ग नहीं लगता : जैसे- भो॰ हम देखलिन, ऊ कहिलिस, अवधी में हम देखिन, ऊ कहिस । पूर्वी हिन्दी और बिहारी
हिन्दी की बोलियों में विशेषण प्राय: आकारान्त नहीं होते, जैसे-
नीक, मीट, खोट । इसलिए विशेषण लिंगवचन कारक
में अपरिवर्तित रहते हैं। संज्ञाओं का एकवचन रूप बहुवचन में नहीं बदलता; जैसे – लरिका गवा, लरिका गयेन । बिहारी बोलियाँ तीन
है – भोजपूरी, मगही, मैथिली । मगही मध्यस्थ
है, यह अन्य दोनों को जोड़ती है । इन बोलियों के संज्ञा रूप, सर्वनाम और क्रियारूप लगभग समान है । रचनात्मक प्रत्यय भी एक से है । सबसे
बड़ी पहचान अ भी वृत्ताकार ध्वनि है जो थोड़ी बहुत बँगला से मिलती है ।
निष्कर्ष
यह है कि हिन्दी की सब बोलियाँ पास पड़ोस कि बोली से कई तत्वों में गूँथी होती है ।
पहाड़ी और मगही, अथवा मारवाड़ी और मैथिली में इतना भारी अंतर है कि इनके बोलने वाले
एक दूसरे को नहीं समझ पाते तब उन्हें सामान्य हिन्दी जोड़ती है ।
हिन्दी
प्रदेश एक ऐसा भूखंड है जहाँ बोलियों के बीच में कोई स्पष्ट सीमारेखा नहीं है । इस
कारण से सब बोलियाँ परस्पर जुड़ी हैं,
1. गढ़वाली 2. कुमाउनी 3. हरयाणी 4. राजस्थानी 5. व्रजभाषा 6. बुन्देली 7. कन्नौजी 8. अवधी 9. बघेली 10. छत्तीसगढ़ी 11. भोजपुरी 12. मगही 13. मैथिली ।